रविवार, 8 अप्रैल 2012

भागने का नहीं था कोई भी रास्ता , बकरी और मेमने की हालत खस्ता।


एक नन्हा मेमना और उसकी मां बकरी,
जा रहे थे जंगल में राह थी संकरी।

अचानक सामने से आ गया एक शेर
,
लेकिन अब तो हो चुकी थी बहुत देर।

भागने का नहीं था कोई भी रास्ता
,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।

उधर शेर के कदम धरती नापें
,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।

अब तो शेर आ गया एकदम सामने
,
बकरी लगी जैसे-जैसे बच्चे को थामने।

छिटककर बोला बकरी का बच्चा-

शेर अंकल! क्या तुम हमें

खा जाओगे एकदम कच्चा
?
शेर मुस्कुराया
,
उसने अपना भारी पंजा मेमने के सिर पर फिराया।

बोला-

हे बकरी - कुल गौरव
, आयुष्मान भव!
दीघार्यु भव! चिरायु भव!

कर कलरव! हो उत्सव!

साबुत रहें तेरे सब अवयव।

आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर
,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा

उछलो
, कूदो, नाचो और जियो हंसते-हंसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान
,
बकरी हैरान- बेटा ताज्जुब है
,
भला ये शेर किसी पर रहम खानेवाला है
,
लगता है जंगल में चुनाव आनेवाला है

लेबल: ,

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ